Tuesday, February 4, 2014

तुम कर सकते हो!


क्या हुआ जो उदास हो, मंज़िल के कितने पास हो?
बड़ी दूर से तो आये थे तुम, और इतने में ही हताश हो?
बांध ली है तुमने जो पैर में बेड़ी, उखाड़ उसे अब फेंकना है,
सपनों को आँसू बनाओ मत, आगे तुम्हे अब देखना है!
फिर से गीली उन आँखों में, स्वप्न नये तुम भर सकते हो,
तुम कर सकते हो!

माँफी कोई देता नहीं, 'दोषी' मन सहम जाता है
गलतियाँ कई, अफ़सोस कई, दिलासे के लिए तरस जाता है!
सज़ाएँ मिलेंगी, रज़ाएँ मिलेंगी, जीवन का तुम्हारे क्या मोल है?
शुरुआत करो नयी अब से, रात गयी अब भोर है!
कोई और करे न करे, माँफ खुद को तुम कर सकते हो,
हाँ... तुम कर सकते हो!

कई पथिक मिलेंगे यहाँ पे, कुछ ज़खमी कुछ हारे हैं,
कुछ वक़्त को भी पीछे छोड़, बढ़ रहे आगे हैं,
तकती धूप में जलेगी काया, छाँव नदी किनारे है-
सुनो मन-मस्तिष्क में शोर करते, सपने अधूरे सारे हैं,
'ना' कह के कुछ चीज़ों को, मंज़िल को नज़दीक तुम कर सकते हो,
ज़रूर... तुम कर सकते हो!

कठिनाइयों से भरे जब रास्ते हो, और हालात बिगड़े हुए,
लड़ते रहना तब भी तुम, भले गिरते-पड़ते, लंगड़ाते हुए!
बैठे क्यों हो तुम निर्जीव, जब अपाहिज भी यहाँ उठ रहे,
जंग अतिजीवन की लड़ने, देखो पशु भी जूझ रहे!
कैसा भी जीवन का हाल हो, बेशक़ उसे बेहतर तुम कर सकते हो,
....तुम कर सकते हो!!