तुम हो... कुछ हो!
दरिया है तुम्हारे अंदर, साँसों में तूफ़ान है,
दरिया है तुम्हारे अंदर, साँसों में तूफ़ान है,
खून खौलता लावा, मर-मस्तिष्क में बवाल
है!
भवंडर हैं कदम
कदम पर और
खुद ही से जूझते
हो?
क्यों किसी
की विचार-धाराओं
में अस्तित्व अपना
ढूँढ़ते हो?
क्रांति क्रांति चिल्लाते हो...
शांति की आशा
भी रखते हो...
तुम कभी कभी
समझ नहीं आते
हो!
किसने बेड़ियाँ बाँधी तुम
पे, तुमने और
कितनों पे बाँधी?
संस्कृति की बातें
सुनायीं बहुत, और सभ्यता
पे रोक लगायी?
बदलाव की बातें
करते हो, कहाँ
जा कर बसते
हो!
कौनसी सत्ता, कैसे नारे,
किसको दिनभर कोसते
हो?
गंदगी में पैर
रखते हो...
फिर पैर को
साफ करते हो...
तुम कभी कभी
समझ नहीं आते
हो!
कौन गुरु, कपटी कौन,
कौन भगवान ज्ञात
नहीं!
रखना तो है
किसी पे विश्वास,
फिर आत्मविश्वास क्यों
नहीं!
है इन्सानियत
इतनी दुर्लभ, कि
जिसने दिखाई भगवान
है,
बाकी या तो बेरहम, या बेरहमी से परेशान हैं!
बाकी या तो बेरहम, या बेरहमी से परेशान हैं!
डर पैदा करते
हो...
उसी डर से
रुक जाते हो...