है कानों में क्रूर हास्य पर चेहरा गंभीर है,
मूक है अन्तर्मन पर चीखें इतनी तीव्र हैं,
तेज़ है गति विचारों की, धीमे पड़ रहे हैं कदम,
पुकार रहे हैं पुर्ज़े मेरे, कान बहरे हैं एकदम!
बेजान सा संघर्ष है, और खोखला वजूद,
हार शायद अब अटल है, दृढ़निष्ठा के बावजूद!
है कानों में क्रूर हास्य पर चेहरा गंभीर है,
मूक है अन्तर्मन पर चीखें इतनी तीव्र हैं,
आँखें मेरी हैं देख रहीं, एक हस्ती को गिरते हुए,
आँधियों से भिड़ने वाले को, धूल में मिलते हुए!
आत्मा भी निंदा कर रही, निरर्थक प्रयासों की,
जिनमें केवल अस्थियाँ हैं, कई सारी मन्षाओं की!
है कानों में क्रूर हास्य पर चेहरा गंभीर है,
मूक है अन्तर्मन पर चीखें इतनी तीव्र हैं,
सिरहाने बैठी मौत है, टाक रही एकटक है,
लेने आयी जो शेष है, सिरहाने बैठी मौत है...
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