है कानों में क्रूर हास्य पर चेहरा गंभीर है,
मूक है अन्तर्मन पर चीखें इतनी तीव्र हैं,
तेज़ है गति विचारों की, धीमे पड़ रहे हैं कदम,
पुकार रहे हैं पुर्ज़े मेरे, कान बहरे हैं एकदम!
बेजान सा संघर्ष है, और खोखला वजूद,
हार शायद अब अटल है, दृढ़निष्ठा के बावजूद!
है कानों में क्रूर हास्य पर चेहरा गंभीर है,
मूक है अन्तर्मन पर चीखें इतनी तीव्र हैं,
आँखें मेरी हैं देख रहीं, एक हस्ती को गिरते हुए,
आँधियों से भिड़ने वाले को, धूल में मिलते हुए!
आत्मा भी निंदा कर रही, निरर्थक प्रयासों की,
जिनमें केवल अस्थियाँ हैं, कई सारी मन्षाओं की!
है कानों में क्रूर हास्य पर चेहरा गंभीर है,
मूक है अन्तर्मन पर चीखें इतनी तीव्र हैं,
सिरहाने बैठी मौत है, टाक रही एकटक है,
लेने आयी जो शेष है, सिरहाने बैठी मौत है...
(The author does not own copyright of any picture. Pic courtesy: internet)
Amazingly brought out the pointlessness of a movement where foot soldiers do not believe in the purpose....
ReplyDeleteBrought tears. So so dark. This is just what has come out. What do you have deep inside?
ReplyDeleteI have lots of poetry deep inside. :)
DeleteA poem very close to the harsh reality of life ! Very well brought out mam !
ReplyDeleteThanks a lot Surabhi! :-*
Delete"हार शायद अब अटल है, दृढ़निष्ठा के बावजूद!", too good this, very well expressed.
ReplyDeleteThank you! :)
Deleteनारी की पीड़ा सच में सुनाई दी...
ReplyDeleteआप के विचारोंको सलाम...😊
शुभकामनाए...👍😊
Thank you Shankar!
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