Wednesday, May 1, 2019

न्यायगंगा - Part I

Ganga marries Shantanu on the condition that he will never question her acts or she will leave him. She gives birth to 7 children but drowns them all in the waters of (river) Ganga. This 2-part poem, 'न्यायगंगा', is a dialogue that takes place between Shantanu and Ganga when he finally steps forward to stop her from drowning their 8th child...


Part I- शांतनु, गंगा से:



सोचा था इस मिलन में है हस्तिनापुर का फायदा...
पर आजीवन तुम्हें न टोक सकूँ, कैसा यह कायदा?
अँधा प्रेम, अँधा वचन- उस पे मुझे अब धिक्कार है|
दिव्य स्वरुप से लुभाने वाली, अब लायी तू अंधकार है!

क्या कर रही हो, क्यों कर रही हो... है तुम्हें ज्ञात?
मृत्यु के घाट उतार चुकी हो अपने सात बालक नवजात!
देख, तुझ पे क्रोधित है हस्तिनापुर नगरी सारी,
जो महारानी ही बन गयी अपने पुत्रों की हत्यारी!

मेरी पत्नी, अर्धांगिनी, मेरी जीवन-साथी
गंगा, आखिर क्यों बनी तू मेरी ही अपराधी?
माना तुझ को रोकने की मुझमें क्षमता नहीं,
पर क्या रोकती तुम्हें स्वयं अपनी ममता नहीं?

पाप-नाशिनी, पवित्र जाह्नवी- क्या मन तुम्हारा दूषित है?
ब्रह्मपुत्री, जीवन-दायिनी, यह पूछना भी अब अनुचित है?
मैं ठहरा वचन-बद्ध, निर्बल, कर्मों से लाचार,
पर आँठवी बार न सुन सकूँगा, वही शोकमय समाचार!!

गंगा, मुझे उत्तर दो-
क्या मेरे बालक पे मेरा ही अधिकार नहीं?
क्यों तुझको इसका जीना कदापि स्वीकार नहीं?
गंगा, मुझे उत्तर दो,
मुझे उत्तर दो गंगा...

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