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Saturday, January 12, 2019

आज वक्त दो


आज वक्त दो
अपने आप को
'कुछ नहीं' करने के लिए
बस यूँहीं चलने के लिए
आज वक्त दो!

आज स्टेटस बिझी रखो
सोशल लाइफ इझी रखो
बस झिंदगी की फाइल खोल के
पन्ने अगले-पिछले तोड के
एक गीत लिखने के लिए
कुछ नया सीखने के लिए
आज वक्त दो!

और कितने छुँओगे तारे
ये कहाँ ले जाओगे सारे
आज हरियाली पे डाल के बिस्तर
जान लो ख्वाब और खुशी में अंतर
खुले आसमान को तकने के लिए
थोडा खुद पे हँसने के लिए
आज वक्त दो!

आज वक्त दो
अपने आप को
कुछ 'नहीं सुलझाने' के लिए
बस यही समझाने के लिए
आज वक्त दो🙂




कुछ जगहें



कुछ जगहों में जान सी है,
कुछ जगहों में जान सी है|

नानी के घर का बरामदा, जहाँ सर पे चोट खायी थी,
वो डरावना भूत-बंगला, जिसकी अफवाहों ने जान उडायी थी
स्कूल के पास वाला PCO बूथ, जहाँ से किया हमने कांड था,
वो दूकान- जहाँ से लाते थे हम, चित्र जिनका डिमांड था!
बिस्तर के नीचे छिपी हुई एक personal डायरी थी,
और सारे journals के पिछले कवर पर, लिखी मैंने शायरी थी-

कुछ जगहों में जान सी है,
कुछ जगहों में जान सी है|

काॅलेज कैंटीन में बीते लम्हों में मन भटका-भटका सा है,
पहली date की secret जगह पे, यादों का GPS location अटका सा है!
पहला सुट्टा मारा था जिस टपरी पे, आज भी उसके चर्चे हैं,
ड्रावर के पिछले कोने में आज भी, पहली salary slip के पर्चे हैं!
घर के उस rack पर  audio cassettes में,  90s आज तक झिंदा हैं,
कुछ जगहें ऐसीं आस पास हमारे, खास हैं पर चुनिंदा हैँ!

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