'वियोग' मानो अब राधा का दूसरा नाम था,
उदासी उसकी कृष्ण के जाने का परिणाम था|
मुरली का मधुर स्वर कहाँ वह भूल पायी थी,
निर्जीव बने वृन्दावन सी राधा भी मुरझाई थी!
दिन अकेलेपन में बीते, अधूरेपन में रातें ढलीं,
मन प्यासा रहा भले ही आँखों से बरसातें बहीं!
कहने को वह पत्नि थी, बहन और बेटी थी,
पर कृष्ण की याद में, हर क्षण अकेली थी|
कभी कर्तव्य, कभी रीति, कैसे मिल पाते दोनों?
एक-दूसरे के बिन लेकिन, कैसे जी पाते दोनों?
बिनती कर उद्धव को, मथुरा ले जाने,
चल पडी राधा रानी, श्री को गले लगाने|
"कैसी है मथुरा नगरी, कौन लोग हैं वहाँ?"
असमंजस में उद्धव ने राधा को समझाते कहा-
"मथुरा नगरी कृष्ण की- विशाल और स्वर्णीय है,
रानियों में उसकी रुक्मिणी- सत्यभामा सर्वप्रिय हैं|"
"उद्धव, श्री के जीवन में तो सुख का आभाव नहीं,
उसमें मैं? नहीं... 'स्वार्थ' प्रेम का स्वभाव नहीं!
वह नहीं, पर उसकी यादें मेरे साथ हैं,
वह ख़ुश रहे यही मेरे लिए पर्याप्त है!"
"शब्द ये प्रेम भरे, राधे, किसी और ने भी कहे थे,
दुःख वियोग के, बिना बोले, किसी और ने भी सहे थे!
नि:स्वार्थता जितनी तुम में है, उतनी ही अनय में...
तुम्हारे विरह में जीया है, वह भी उसी समय में!
तुम 'कृष्ण' की छवि, तो अनय 'राधा' का स्वरूप,
बोलो हुए न तुम दोनों, राधा-कृष्ण के अनुरूप?"
कहता था श्याम सदैव, "राधे, तुम-मैं एक"...
अब समझ गयी थी वह, बात उसकी प्रत्येक|
एक राधा कृष्ण के मथुरा से लौटने की प्रतीक्षा करती...
एक राधा वृन्दावन से राधा के लौटने की राह तकती...
लौट गोकुल जा मिली, राधा- 'अपने आप' से,
मुक्त हो गए ...दोनों... प्रेम-वियोग के श्राप से!
A blog of my original Hindi poems, dedicated to Late Mrs. Kumudini Ingle- the teacher who taught me nuances of the beautiful language Hindi while in High School, shaped my perspective towards life and inspired me in innumerable ways...
Friday, January 18, 2019
~ राधा ~
Saturday, January 12, 2019
आज वक्त दो
आज वक्त
दो
अपने आप
को
'कुछ
नहीं'
करने
के
लिए
बस यूँहीं
चलने
के
लिए
आज वक्त
दो!
आज स्टेटस
बिझी
रखो
सोशल लाइफ
इझी
रखो
बस झिंदगी
की
फाइल
खोल
के
पन्ने अगले-पिछले
तोड
के
एक गीत
लिखने
के
लिए
कुछ नया
सीखने
के
लिए
आज वक्त
दो!
और कितने
छुँओगे
तारे
ये कहाँ
ले
जाओगे
सारे
आज हरियाली
पे
डाल
के
बिस्तर
जान लो
ख्वाब
और
खुशी
में
अंतर
खुले आसमान
को
तकने
के
लिए
थोडा खुद पे हँसने
के
लिए
आज वक्त
दो!
आज वक्त
दो
अपने आप
को
कुछ 'नहीं
सुलझाने'
के
लिए
बस यही
समझाने
के
लिए
आज
वक्त
दो!
🙂
Labels:
free,
introspection,
life,
me-time,
nothing,
nothingness,
reflect,
self,
time
मैं जोकर हूँ!
कभी पान की सत्ती, तो कभी हुकुम का इक्का हूँ,
कभी पान की सत्ती, तो कभी हुकुम का इक्का हूँ,
शोले फिल्म में जो जय का था, toss का वह नायाब सिक्का हूँ!
खुद अपनी कहानी का ट्विस्ट और राज़ से भरा एक locker हूँ,
मैं जोकर हूँ!
कभी दिल फिसल गया तो, मीठी सी ग़लतियाँ करती हूँ,
कभी दिल फिसल गया तो, मीठी सी ग़लतियाँ करती हूँ,
४ पेग ज़िन्दगी के चढा के, कविताओं की उलटियाँ करती हूँ!
३० की उम्र में सिंगल हूँ... किस के प्यार की ठोकर हूँ?
मैं सिर्फ एक जोकर हूँ!
कभी अक्षय के फिल्मों जैसी एक पेचीदा सवाल हूँ,
कभी अक्षय के फिल्मों जैसी एक पेचीदा सवाल हूँ,
कभी रणवीर के ड्रेसिंग जैसी पागलपंती धमाल हूँ!
बाँधे रखियेगा सीट की पेटी... आप शौक़ीन तो मैं shocker हूँ,
मैं एक जोकर हूँ!
रुम्मी हो या हो पोकर, हर खेल में फँस जाती हूँ,
रुम्मी हो या हो पोकर, हर खेल में फँस जाती हूँ,
जोक खुद होती हूँ, तो भी हँस जाती हूँ!
ग़म का caution deposit है... मैं हँसी की broker हूँ!
मैं जोकर हूँ!
जी हाँ, मैं एक जोकर हूँ! 🤡
कभी पान की सत्ती, तो कभी हुकुम का इक्का हूँ,
शोले फिल्म में जो जय का था, toss का वह नायाब सिक्का हूँ!
खुद अपनी कहानी का ट्विस्ट और राज़ से भरा एक locker हूँ,
मैं जोकर हूँ!
कभी दिल फिसल गया तो, मीठी सी ग़लतियाँ करती हूँ,
कभी दिल फिसल गया तो, मीठी सी ग़लतियाँ करती हूँ,
४ पेग ज़िन्दगी के चढा के, कविताओं की उलटियाँ करती हूँ!
३० की उम्र में सिंगल हूँ... किस के प्यार की ठोकर हूँ?
मैं सिर्फ एक जोकर हूँ!
कभी अक्षय के फिल्मों जैसी एक पेचीदा सवाल हूँ,
कभी अक्षय के फिल्मों जैसी एक पेचीदा सवाल हूँ,
कभी रणवीर के ड्रेसिंग जैसी पागलपंती धमाल हूँ!
बाँधे रखियेगा सीट की पेटी... आप शौक़ीन तो मैं shocker हूँ,
मैं एक जोकर हूँ!
रुम्मी हो या हो पोकर, हर खेल में फँस जाती हूँ,
रुम्मी हो या हो पोकर, हर खेल में फँस जाती हूँ,
जोक खुद होती हूँ, तो भी हँस जाती हूँ!
ग़म का caution deposit है... मैं हँसी की broker हूँ!
मैं जोकर हूँ!
जी हाँ, मैं एक जोकर हूँ! 🤡
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